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लेखनी प्रतियोगिता -03-Feb-2023 अनोखा बंधन



शीर्षक = अनोखा बंधन




आसमान जो की बिलकुल साफ था, बादल का एक अंश भी नज़र नही आ रहा था। गर्मी झूलसा कर फेक देने वाली पड़ रही थी, नदी नाले, सूख चुके थे, कुओं का पानी भी नीचे चला गया था, डोल डालने पर भी कुछ हाथ नही लग रहा था सिवाय निराशा के


खेतों में दरार पड़ चुकी थी, फ़सल पानी की कमी से सूख कर कांटा बन चुकी थी, सब की आस बारिश पर टिकी हुयी थी और बारिश थी की होने का नाम नही ले रही थी, इंसानों के पीने के लिए पानी ख़त्म हो चूका था ऐसे में जानवर क्या पीते इसलिए बहुत से जानवर भूख और प्यास से हार कर मौत को गले लगा चुके थे


ईश्वर न जाने उस गांव और उस गांव में रहने वालों की कोनसी परीक्षा ले रहा था, की बरसात के तीन महीने गुज़र गए थे लेकिन वहाँ की धरती पानी की एक एक बूँद को तरस रही थी, लोग अपने जानवर कोड़ियों के दाम पर बेच कर अपना घर बार, अपने बच्चों को लेकर शहर या फिर कही और ठीखना तलाश करने जा रहे थे


क्यूंकि उन लोगो को अपनी मौत सामने ख़डी नज़र आ रही थी, ऐसे में गोवर्धन किसान मुँह लटकाये अपने दो बेलो के साथ अपने घर से कुछ दूरी पर बनी मंडी में जा रहा था जहाँ जानवर फरोख्त हो रहे थे, गांव वालों की मजबूरी का फायदा उठाते हुए लोग उन जानवरों को बेहद ही सस्ते दामों में खरीद रहे थे,


गोवर्धन के घर से वो मंडी थोड़ा दूर थी, वापस लौटने पर उसे शाम हो जाती इसलिए उसकी पत्नि ने जो कुछ भी घर में बचा हुआ था उसे रास्ते के लिए बांध कर दे दिया था, और कुछ अपने और अपने बच्चों के लिए रख लिया था


अन्य गांव वालों की तरह गोवर्धन भी अपनी पत्नि के कहने पर अपने बेलो को बेचने जा रहा था, ताकि उन्हें बेच कर वो कही और चले जाए और जब सूखा ख़त्म हो जाएगा तब वापस आ जाएंगे, नही तो वो भी जानवरों की तरह भूख और प्यास से मर जाएंगे


गोवर्धन न चाहते हुए भी आज अपने बेलो को बेचने के लिए निकल पड़ा था, वो बैल जिनकी रस्सी वो अपने हाथो में थामे हुए था उनसे उसका एक अनोखा बंधन था, जिसे शायद दुनिया वाले नही समझ सकते उसने कभी सोचा नही था की जीवन में एक ऐसा समय भी आएगा की उसे अपने बेलो को बेचना पड़ेगा

उस तपती धूप और गर्मी में उसे न तो धूप ही लग रही थी और न ही उसे प्यास, उसे तो बस चिंता सता रही थी कि जिन बेलो को उसने अपने बच्चों की तरह पाला था, जो बैल उसके कितने काम आते थे, खेत जोतने से लेकर कोल्हू में बंधने तक वो अपने हर एक उपकार का बदला उसे देते थे, उसके प्यार का सिला वो बिना थके मेहनत करके उसे देते थे


लेकिन आज वो अपने स्वार्थ के लिए, अपने बच्चों और पत्नि के कहने पर उन्हें बेचने जा रहा है, हर एक बढ़ता कदम उसे उसके बेलो से दूर कर रहा था जिनके साथ उसका एक अनोखा बंधन बंधा हुआ था


वैसे तो वो बैल उसे तंग करते थे, जब भी वो उन्हें घर से खेत पर लेकर जाता था, कभी इधर भागते तो कभी उधर लेकिन आज न जाने क्यूँ उन बेलो को भी आभास सा हो गया था, कि आज उनका मालिक उनसे जान छुड़ाने के लिए उन्हें मंडी ले जा रहा है, इसलिए वो ख़ामोशी से बस चले चल रहे थे, नीचे को मुँह लटकाये


चलते चलते कब दोपहर हो गयी पता ही नही चला,गोवर्धन तो बस ज़िंदा लाश बने चल रहा था, बेलो कि जुदाई का सोच कर उसने तो न पानी ही पिया और न ही कही रुका, लेकिन जब उसने बेलो के बारे में सोचा तो एक जगह देख कर उन बेलो को आराम करने के लिए बैठा दिया, ताकि वो उन्हें कुछ खिला पिला सके, अब बस थोड़ी देर का ही सफऱ रह गया था उनके जुदा होने का

जो रोटी और पानी वो अपने लिए लेकर चला था, वो उसने उन दोनों के आगे रख दी और थोड़ी बहुत घास का बंदोबस्त करने चला गया, वापस आया तो देखा जो खाना उसने उनके आगे रखा था ज्यो का त्यों ही रखा हुआ था, उसके हाथ में थोड़ी सूखी घास थी वो दौड़ा हुआ आया और घास उनके आगे रख दी, लेकिन उन्होंने मुँह तक नही मारा


गोवर्धन, वही उनके पास बैठ गया और उनसे बाते करने लगा, और उनसे बोला तुम दोनों को याद  जब  पिता जी ऐसे ही एक मंडी से तुम दोनों को खरीद कर लाये थे, तब तुम बहुत छोटे थे, उनकी माँ उन्हें जन्म देने के बाद मर गयी थी, वैसे तो बहुत कम ही ऐसा होता है कि कोई गाय या भैंस एक से अधिक बच्चें को जन्म दे लेकिन उन दोनों को एक माँ ने ही जन्म दिया था और कुछ हफ्ते बाद वो मर गयी थी, ऐसा उसके मालिक ने बताया था, पिता जी उन्हें खरीद कर अपने घर ले आये थे

जब से लेकर अब तक गोवर्धन ने उनके साथ एक अरसा गुज़ारा था, जिसके चलते उसके और उसके बेलो के बीच एक अनोखा बंधन सा बन गया था, वो उन दोनों को एक औलाद की भांति समझता था, गांव वाले भी उस पर हस्ते थे कभी कभी उसे उन बेलो के लिए इतना फ़िक्र मंद होता देख, उसने उनका एक नाम भी रखा था गोपी और किशन

थोड़ी देर बाते करने के बाद, गोवर्धन उन्हें मंडी की तरफ ले गया, जहाँ उनका सौदा करना था


वही दूसरी तरफ, गोवर्धन की पत्नि अपना और बच्चों का समान बांध रही थी, ताकि उसके आते ही वो लोग यहाँ से चले जाए, क्यूंकि जो कुछ था सब ख़त्म होने को था, अभी भी अगर वहाँ रुके तो मौत निश्चित थी


धीरे धीरे दोपहर से शाम हो जाती है, सूरज डूब जाता है, और आसमान में सितारे टिम टिमाने लगने लगते है, गोवर्धन की पत्नि बाहर ख़डी अपने बच्चों के साथ उसकी राह देखती है, काफी समय हो गया था लेकिन गोवर्धन नही आया


बहुत देर बाद, कुछ सुनाई पड़ा, गोवर्धन की पत्नि ने जब धकान लगा कर सुना तो वो बेलो की घंटी की आवाज़ थी, वो बाहर दौड़ती हुयी आयी तो देखा गोवर्धन अपने बेलो के साथ वहाँ खड़ा था


"सत्यनास! नही बेचे तुमने ये बैल, मैं जानती थी कि तुम ऐसा नही करोगे,," गोवर्धन की पत्नि गरिमा ने कहा


"भाग्यवान मेरी बात तो सुनो " गोवर्धन ने कहा

"क्या सुनु ? जो देख रही हूँ वो काफी नही है,आप से कहा था कि इन्हे बेच कर आना ताकि कुछ पैसे मिल जाएंगे जिससे की कही और रहना हमारे लिए आसान होगा, " गरिमा ने कहा


"मुझसे नही हो पाया, मैं मंडी गया था, लेकिन मैं इन दोनों को अपने से जुदा नही कर पाया, इनसे बिछड़ कर मुझे ऐसा लग रहा था मानो में अपने शरीर का कोई अंग कही छोड़ कर जा रहा हूँ, तुम्हारे कहने पर मैं इन्हे ले तो गया था लेकिन मुझसे इन्हे बेचा नही गया, तुम सब सही कहते हो एक अनोखा सा बंधन है जो मुझे इनके साथ बांधे हुए है, भगवान के लिए मुझसे इन्हे जुदा करने की बात न करो " गोवर्धन जी ने कहा नम आँखों


"आप निभाओ, ये अनोखा बंधन इन बेलो के साथ, मुझे अपनी और अपने बच्चों की जान बहुत प्यारी है, मैं चली अपने बच्चों को लेकर, मुझे यहाँ इस अकाल पड़े गांव में भूख प्यास से नही मरना, तुम रहो अपने इन बेलो के साथ " गरिमा ने कहा

"भाग्यवान, इस तरह न कहो, मृत्यु तो कही भी आ सकती है " गोवर्धन जी और कुछ कहते तब ही गरिमा जी बोल पड़ी


"मृत्यु कही भी आ सकती है, तो इसका मतलब ये नही की जहाँ मौत का साया मंडरा रहा हो वही अपने कदम बड़ा देना, कोई समझदारी नही है, मैं जा रही हूँ, "


"मत जाओ भाग्यवान देखना बहुत जल्द बारिश इस गांव की और अपना रुख कर लेगी, खुशहाली लौट आएगी, सब पहले जैसा हो जाएगा, ये इम्तिहान की घड़ी है देखना बहुत जल्द इंद्र देव की असीम किरपा इस गांव पर वर्षा के रूप में बरसेगी, इस तरह मत जाओ " गोवर्धन जी ने कहा

"मुझे, नही करना बारिश का इंतज़ार, तुम रहो अपने इन बेलो के साथ, याद रखना ये सूखा इतनी जल्दी ख़त्म नही होने वाला, कोई आशा, कोई उम्मीद कुछ भी तो नजर नही आ रहा, यहां रुकना सिर्फ और सिर्फ बेवकूफी होगी और कुछ नही तुम हो बेवक़ूफ़ जो इन जानवरों के खातिर खुद को और मुझे भी यहां रुक कर तड़प तड़प कर मरने की सलाह दे रहे हो, मैं जा रही हूँ, अभी थोड़ी देर में काफिला रवाना होगा, मन करे तो आ जाना इन बेलो को  यही छोड़ कर  अगर साथ लाये तो इनके लिए रास्ते में खाना और पानी का बंदोबस्त करते लाना " गरिमा ने कहा और अपने दोनों बच्चों और गठरी उठा कर वहाँ से चली गयी


गोवर्धन वही अपने बेलो के पास बैठा उन्हें जाता देखता रहा और जब तक देखता रहा जब तक की वो आँख से औझल न हो गए


उसके बैल भी वही उसके पास ही बैठे थे, न जाने उसकी कब आँख लग गयी और जब आँख खुली तो सूरज उसके सामने अपनी आग बरसा रहा था


पूरा गांव खाली हो चूका था, सिवाय उसके और उसके बेलो के वहाँ कोई न था, वो दोनों ही एक दुसरे की हिम्मत थे शायद, वो बंधन जो दुनिया की समझ से परे था उस अनोखे बंधन ने दोनों को बांधे रखा था

भूख और प्यास से गला सूखने लगा था, मानो जान गले में अटक गयी थी, गोपी और किशन भी हिम्मत हार गए थे, और जमीन पर गिर गए थे, उनका उठना मुश्किल मालूम पड़ रहा था, लेकिन गोवर्धन के हाथ फेराने से उन दोनों ने आँखे खोली जिनमे आंसू निकल रहे थे


गोवर्धन भी उनकी हालत देख रोने लगा था, लेकिन उनसे बाते कर रहा था, उसकी हिम्मत भी जवाब दे चुकी थी और न जाने कब वो उनसे बाते करते करते भगवान को प्यारा हो गया, उसकी सास की डोर टूट ते ही, गोपी और किशन की सास की डोर भी टूट गयी और वो तीनो वही भगवान को प्यारे हो गए,  उनका वो अनोखा बंधन जिसे न तो उसके घर वाले और न ही कोई और समझ पाया था अब हमेशा हमेशा के लिए अमर हो गया था, उनकी इस जुदाई पर आसमान भी रोना चाहता था शायद इसलिए ही उधर उनके प्राण निकले उधर आसमान काले बादलों से भर आया और उनके वियोग में इतना रोया की जब तक वो गांव और उस गांव की हर एक चीज पानी से भर न गयी

एक हफ्ते बाद जब सब ठीक हो गया तो गांव वाले वापस आने लगे, तो अपने सामने पड़े दृश्य को देख चौक गए, गोवर्धन के घर के सामने पड़े गोपी और किशन के साथ गोवर्धन की लाश को देख उन्हें समझ आ गया था गोवर्धन और उसके बेलो के बीच का बंधन एक अनोखा बंधन था


प्रतियोगिता हेतु 

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7 Comments

Gunjan Kamal

13-Feb-2023 10:42 AM

बेहतरीन

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अदिति झा

06-Feb-2023 12:21 PM

Nice 👌

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बहुत खूब

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